Monday, October 22, 2012

क्यों चमकती है बादल गरजने पर बिजली?


मशहूर वैज्ञानिक बेन्जमिन फ्रेंकलिन उन पहले लोगों में से हैं जिन्होंने बिजली चमकने के पीछे के कारणों को समझने की कोशिश की थी.
उनका ये निष्कर्ष बिल्कुल सही था कि बिजली कौंधना दरअसल एक प्राकृतिक इलेक्ट्रिकल डिस्चार्ज है. लेकिन ये स्पष्ट नहीं है कि उनका 1752 में चर्चित ‘काइट एंड की’ प्रयोग कभी महज़ विचार से आगे बढ़ पाया था या नहीं.
देखा जाए तो कई मायनों में मनुष्य फ्रैंकलिन के प्रयोग से आगे नहीं बढ़ पाया है. मिसाल के तौर पर इस बात को लेकर आज तक एक राय नहीं बन पायी है कि बादलों में चार्ज कैसे आता है ?
अलग-अलग सिंद्धात
ऐसा लगता है कि बर्फ के कण जब आपस में टकराते हैं तो उनमें इलेक्ट्रिकल चार्ज आ जाता है, और बर्फ के छोटे कण में आमतौर पर पॉजि़टिव चार्ज आने की संभावना रहती है जबकि बड़े कणों में नेगेटिव चार्ज.
जैसे-जैसे छोटे कण कनवेक्शन करंट के कारण ऊपर उठने लगते हैं, वैसे-वैसे बड़े कण गुरुत्वाकर्षण के कारण नीचे बैठने लगते हैं. इस तरह विपरीत चार्ज वाले कण एक दूसरे से अलग होने लगते हैं और इलेक्ट्रिकल फील्ड तैयार हो जाता है.
बिजली कौंधने से ये फील्ड डिसचार्ज हो जाता है. दरअसल ये चार्ज हो चुके बादल और पृथ्वी के बीच बहुत बड़ी चिंगारी की तरह होता है. ये आज भी रहस्य बना हुआ है कि ये चिंगारी पैदा कैसे होती है.
कॉस्मिक किरणों का रहस्यएक विचार ये है कि ये चिंगारी अंतरिक्ष से वातावरण में जाने वाली कॉस्मिक किरणों के कारण पैदा होती है.
कॉस्मिक किरणें सुपरनोवा जैसी प्रक्रियाओं के दौरान आमतौर पर प्रोटोन और इलेक्ट्रॉन से बनती हैं.
अगर एक कॉस्मिक किरण हवा के अणु के साथ टकराती है, तो इससे कई तरह के पार्टिकल निकल सकते हैं. ये बाद में अन्य अणुओं के साथ टकराते हैं, उनको आयोनाइज़ करते हैं और इलेक्ट्रॉन पैदा होते हैं.
1997 में रूस के वैज्ञानिक एलेक्ज़ेंडर गुरेविच और उनके सहयोगियों ने भी इशारा किया था कि कैसे कॉस्मिक किरणें चार्ज पैदा करती होंगी.
उनके मुताबिक बादलों के इलेक्ट्रिक फील्ड में इलेक्ट्रोन आपस में टकराते हैं जिससे और टकराव पैदा होता है और बिजली कौंधती है. इस प्रक्रिया के तहत एक्स रे और गामा रे निकल सकती हैं.
बादल गरजने और बिजली चमकने के दौरान उपग्रहों ने भी एक्स रे और गामा रे का पता लगाया है. इससे ये पता चलता है कि वैज्ञानिक एलेक्ज़ेंडर की बात सही हो सकती है.-----



                                                                                                                              राहुल सिंह

Sunday, September 6, 2009

संसार का सबसे हल्का पदार्थ कौन सा है और इसकी खोज किसने की थी?

ऐरोजैल इस दुनिया का सबसे हल्का पदार्थ है. इसे अकसर ठोस धुंए की संज्ञा दी जाती है. क्योंकि ये देखने में पारदर्शी और धुंधले नीले रंग का होता है. इसमें 99.8 प्रतिशत हवा होती है. अस्ल में ऐरोजैल एक सख़्त झाग है जिसे सिलिकॉन डाइऑक्साइड और रेत से बनाया जाता है. इन्ही पदार्थों से शीशा भी बनता है लेकिन ऐरोजैल शीशे के मुक़ाबले बहुत हल्का होता है.
इसकी एक ख़ूबी ये भी है कि ये अपने से हज़ारों गुना ज़्यादा दबाव झेल सकता है और 1200 डिग्री सैल्सियस तापमान पर पंहुचकर ही पिघलता है. ऐरोजैल का आविष्कार सन 1932 में सैमुअल किसलर नाम के एक वैज्ञानिक ने किया था.
मौनसैंटो कम्पनी ने ऐरोजैल के अधिकार ख़रीद कर इसे इन्सुलेटर की तरह प्रयोग किया. लेकिन इसकी ख़ासियतों को अस्ल में पहचाना द जैट प्रोपल्शन लैबोरेट्री ने और इसका प्रयोग अन्तरिक्ष यात्रा में किया जाने लगा.

हमें प्यास क्यों लगती है?

हमें प्यास इसलिए लगती है क्योंकि हमारे शरीर में पानी की कमी हो जाती है. हमारा शरीर जिन तत्वों से बना है उनमें दो तिहाई पानी है. पानी के बिना हम पाँच से दस दिन से ज़्यादा जीवित नहीं रह सकते.
रोज़ कोई तीन लीटर पानी हमारे शरीर से निकल जाता है, आधा लीटर पसीने में, एक लीटर सांस छोड़ने में और डेढ़ लीटर पेशाब में. अगर हम रोज़ तीन लीटर पानी नहीं पिएंगे तो हमारे शरीर में पानी की कमी हो जाएगी.
मतलब ये कि हमें 6 से 8 गिलास पानी रोज़ पीना चाहिए. इसमें चाय, कॉफ़ी और कोका कोला जैसे पेय शामिल नहीं हैं क्योंकि इनमें मौजूद कैफ़ीन दरस्ल पानी को सोख लेती है. हां दूध, फलों का रस या सब्ज़ियों का सूप पानी की कमी को अवश्य पूरा करते है.

Thursday, June 11, 2009

टमाटर फल है या सब्ज़ी?

अगर आप फल-सब्ज़ी की दूकान पर जाएँ तो टमाटर आपको सब्ज़ियों के साथ रखा मिलेगा. लेकिन वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो टमाटर एक फल है. वनस्पति विज्ञान के अनुसार फल उसे कहते हैं जो पौधे का गूदेदार या फिर पककर सूखा हुआ अंडाशय है जिसमें बीज हों. इस परिभाषा के अनुसार केला, आड़ू, खुबानी, अंगूर, सेव, संतरा, टमाटर, खीरा, सेम की फली आदि सब फल हैं. लेकिन इनमें से कुछ को हम सब्ज़ियों की तरह इस्तेमाल करते हैं. और वनस्पति विज्ञान के अनुसार पौधे की जड़, कंद, डंठल, पत्तियों और फूल को सब्ज़ी की श्रेणी में रखा जाता है. जैसे जड़ हुई आलू, अरबी, गाजर और शलजम. कंद हुई प्याज़ और लहसुन. ऐस्पेरेगस, रुबाब और सैलेरी डंठल की श्रेणी में आते हैं. पत्तों में पत्तागोभी, पालक, सलाद के पत्ते आदि और फूलों में फूलगोभी और ब्रौकली. यानि पौधे का वह हिस्सा जिसमें बीज नहीं होते सब्ज़ी होती है.

Friday, May 22, 2009

पीसा की झुकी हुई मीनार का रहस्य?

इटली में छोटा सा शहर है पीसा. वहीं है ये मीनार जिसके आसपास कई इमारतें हैं जो एकदम सीधी है और वहीं उनके बीच टेढ़ी-सी ये इमारत वाक़ई बड़ी आश्चर्यजनक लगती है. पीसा की झुकी हुई मीनार बननी शुरू हुई वर्ष 1173 में लेकिन इस मीनार को पूरा करने में लगे 200 साल. 1173 में पीसा एक अमीरों का शहर था, वहाँ के लोग अच्छे नाविक थे और व्यापारी भी – और ये लोग जाते थे येरूशलम, कार्थेज, स्पेन, अफ़्रीका, बेल्जियम और नॉर्वे तक. पीसा के लोगों और एक दूसरे इतालवी नगर फ़्लॉरेंस के लोगों का छत्तीस का आँकड़ा था, दोनों ने कई युद्ध लड़े थे और फ़्लोरेंस के लोगों को नीचा दिखाने और अपना बड़प्पन साबित करने के लिए ही ये विशाल मीनार बनाने की शुरुआत पीसा में हुई.
इसके पहले वास्तुशिल्पी यानी बनाने वाले थे बोनानो पीसानो. मीनार का निर्माण शुरू होने के 12 साल बाद ही साफ़ हो गया कि ये टेढ़ी हो रही है लेकिन तब तक इसकी 8 में से 3 मंज़िलें बन चुकी थीं और आज तक बड़े जतन से इस मीनार को गिरने से बचाया जाता रहा है. मीनार बनने का काम शुरू होने के लगभग 830 साल बाद पीसा अब उतना बड़ा शहर नहीं रहा है लेकिन अब भी दुनिया भर से लोग पीसा की इस मीनार को देखने आते हैं और दिलचस्प बात ये है कि बहुत से भारतीय, बांग्लादेशी और पाकिस्तानी लोगों ने पीसा की झुकी हुई मीनार के आसपास अपनी दुकानें सज़ा रखी हैं.

हम सपने क्यों देखते:?

ये सवाल हज़ारों सालों से दार्शनिकों को भरमाता रहा है. इस क्षेत्र में बहुत अनुसंधान हुए हैं और बहुत से सिद्धांत विकसित किए गए हैं लेकिन किसी एक पर सहमति नहीं बन पाई है. कुछ लोगों का मानना है कि सपने निरर्थक और निरुद्देश्य होते हैं जबकि कुछ का कहना है कि सपने हमारे मानसिक, भावात्मक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी हैं. लेकिन, ये सभी मानते हैं कि हमें सपने नींद के रैपिड आई मूवमेंट या आरईऐम चरण के दौरान आते हैं. रैपिड आई मूवमेंट का मतलब है, बंद आंख के भीतर पुतलियों का तीव्र गति से इधर उधर घूमना. एक रात की नींद में 4 या 5 बार आरईऐम के चरण आते हैं. शुरु में ये काफ़ी छोटे होते हैं लेकिन रात बीतने के साथ साथ ये लंबे होते जाते हैं. इस चरण में हमारी आंखों की पुतलियां तेज़ी से घूमती हैं, हमारे मस्तिष्क की गति तेज़ हो जाती है जबकि हमारी मांसपेशियां बिल्कुल शिथिल पड़ जाती है.
इस सिद्धांत के मानने वालों का कहना है कि जागृत अवस्था में हमारा मस्तिष्क निरंतर संदेश ग्रहण करने और भेजने का काम करता रहता है. जिससे हमारा शरीर गतिशील बना रहता है. लेकिन जब हम नींद के आरईऐम चरण में होते हैं तो हमारा शरीर शिथिल हो जाता है जबकि हमारा मस्तिष्क और गतिशील हो उठता है. ऐसी स्थिति में सपने शारीरिक गतिविधि का स्थान ले लेते हैं. जाने माने मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रॉयड का यही मानना था कि सपने हमारी अचेतन इच्छाओं और विचारों के प्रतिनिधि होते हैं. क्योंकि हम जागृत अवस्था में इन्हें व्यक्त नहीं कर सकते इसलिए इन्हें अचेतन मन में धकेल देते हैं और जब हम नींद में होते हैं तो ये सपनों के रूप में प्रकट होते हैं. लेकिन जब तक ये सिद्धांत प्रमाणित या अप्रमाणित नहीं होते कुछ कहना कठिन है.

Thursday, May 14, 2009

याहू का पूरा नाम ............

याहू डॉटकॉम की स्थापना अमरीका के स्टैनफ़र्ड विश्वविद्यालय में इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में पीएचडी कर रहे दो छात्रों, डेविड फ़िलो और जैरी यांग ने 1994 में की थी. यह वेबसाइट जैरी ऐन्ड डेविड्स गाइड टू द वर्ल्ड-वाइड-वैब के नाम से शुरु हुई थी लेकिन फिर उसे एक नया नाम मिला, यट अनदर हाइरार्किकल ऑफ़िशियस ओरैकिल. जिसका संक्षिप्त रूप बनता है याहू. जैरी और डेविड ने इसकी शुरुआत इंटरनेट पर अपनी व्यक्तिगत रुचियों के लिंकों की एक गाइड के रूप में की थी लेकिन फिर वह बढ़ती चली गई. फिर उन्होंने उसे श्रेणीबद्ध करना शुरु किया. जब वह भी बहुत लम्बी हो गई तो उसकी उप-श्रेणियां बनाईं. कुछ ही समय में उनके विश्वविद्यालय के बाहर भी लोग इस वेबसाइट का प्रयोग करने लगे. अप्रैल 1995 में सैकोया कैपिटल कम्पनी की माली मदद से याहू को एक कम्पनी के रूप में शुरू किया गया. इसका मुख्यालय कैलिफ़ोर्निया में है और यूरोप,